Dr. Neelam

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उदास सपने

विषय-- *सपने*
शीर्षक-- *उदास सपने*
विधा-- *कविता*

हर अँधेरी रात को,
लौटे जब बचपन के गाँव
।धुँधली,धुँआती दीवारों पर,उदास सपने थे पड़े।

कितने सपने पड़े हुए थे,
उस खण्डहरी दीवारों में।
बचपन जहाँ गुजरा था,
जिल्लत और अभावों में।

रोज रात सिसकियां भरता रहता था,छत का
कोना।मन बावरा ढूंढता
था,रसभीना कोई सपना।

भूख पेट को थपकी देती,
आज नहीं कल मिलेगी
रोटी।मगर रोटी वाला कल वो,आज भी नहीं
आया।

सोलहवें सावन तलक,
खुशियों की कोई रात
हुई।स्वप्न बचपने के सारे,
आँसुओं में डूब गये।

यौवन कहाँ कब रुठता है,मुँहजोर मचलता है।
नित-नूतन मृगतृष्णा-से,
सपनों में रंग भरता है।

थी धड़कनें अठखेलियाँ
करतीं,साँसों में सरगम
जागी थी।मुँहजोर जवानी
,ख्वाबों में जागी- भागी थी।

मगर सपने तो सपने ही,
कब परवान चढ़ते हैं।
गुरबत में जीने वालों संग,बस मजा़क करते हैं।

महलों के ख्वाब देखती
आँखें, झौंपड़ी में जागी थीं।मन मार उसने फिर,
शहरी कोठरी पाई थी।

इक छोटे-से घर का सपना, रसोई में सिमट गया।रुमानी खयाल सारा, नौन-तेल में घुल गया।

देख-देख खण्डहर पुराना, जिस्म से तौलती हूँ।जर्जर होते जिस्म में,
उघड़े सपने टटोलती हूँ।

     डा.नीलम
      अजमेर

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4 Comments

Gunjan Kamal

13-Mar-2024 10:24 PM

बहुत खूब

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kashish

09-Mar-2024 01:56 PM

Awesome

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Mohammed urooj khan

09-Mar-2024 01:17 PM

👌🏾👌🏾

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